पत्थर की कहानी – मानव शरीर का महत्व
- Swami Yugal Sharan Ji

- 10 अप्रैल
- 3 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 16 अप्रैल

लगातार की तड़प, जीवन की चुनौतियाँ, लक्ष्यों की दौड़, जीवनयापन की लड़ाई और अंततः सर्वश्रेष्ठ बनने की जद्दोजहद ने हमें प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए अनमोल उपहारों से अनभिज्ञ बना दिया है। हम समाज द्वारा बनाए गए मानकों के अनुसार जीवित रहने, जीवनयापन करने और सर्वोच्चता की लड़ाई में इतने उलझे हुए हैं कि परमात्मा द्वारा हमें प्रदान की गई अनगिनत कृपाओं की सराहना करना भूल जाते हैं।
जीवनदायिनी ऑक्सीजन, जीवन बनाए रखने वाला जल, अन्न के रूप में प्रस्फुटित होने वाले बीज जो भूख की ज्वाला को शांत करते हैं, और हमें घातक किरणों से बचाने वाली ओज़ोन की परत — ये सभी प्रकृति के असंख्य उपहारों में से कुछ हैं। लेकिन सबसे बड़ा उपहार, जो परमशक्ति के अस्तित्व का प्रमाण भी है, वह है — जीवन, जो इस जड़ प्रकृति को चेतना प्रदान करता है। ज्ञान की क्षमता और कर्म करने के अधिकार से युक्त यह मानव जीवन ८४ लाख योनियों में सबसे विशेष और उच्चतम स्थान पर स्थित है।
लेकिन आख़िर क्या है इस मानव जीवन की विशेषता?
इसी प्रश्न को एक बार नारद जी के एक शिष्य ने पूछा। नारद जी, जो ब्रह्मा जी के मानसपुत्र और दिव्य प्रेम के आचार्य हैं, से शिष्य ने पूछा — "गुरुदेव! मानव जीवन में ऐसा क्या विशेष है?"
नारद जी ने तुरंत उत्तर नहीं दिया। उन्होंने एक बहुमूल्य रत्न अपने शिष्य को दिया और कहा — "जा, इस रत्न की क़ीमत का पता लगाकर आ। पर ध्यान रहे, इसे बेचना मत।"
वह शिष्य सबसे पहले एक सब्ज़ीवाले के पास गया। सब्ज़ीवाले ने रत्न को देखा और सोचा — “यह तो बड़ा चमकदार है, मेरा पोता इससे खेलेगा।” उसने कहा — "मैं इसके बदले में १० किलो बैंगन दे सकता हूँ।"
इसके बाद वह एक व्यापारी के पास गया। व्यापारी वह रत्न देखकर दंग रह गया और बोला — "मैं इसके बदले १० बोरे गेहूँ देने को तैयार हूँ।"
फिर वह उस रत्न को लेकर एक सुनार के पास गया। सुनार बोला — "मैं इसके बदले ₹१ लाख दे सकता हूँ, क्या तुम इसे बेचोगे?"
शिष्य ने उत्तर दिया — "नहीं, मेरे गुरुदेव ने कहा है कि केवल इसकी क़ीमत का पता लगाना है, बेचना नहीं।"
अंत में वह नगर के सबसे प्रसिद्ध जौहरी के पास गया। जौहरी ने रत्न को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहा — "यह रत्न तुम्हें कहाँ से मिला? तुम जो भी मूल्य चाहो, मैं देने को तैयार हूँ। इसके बदले में तुम करोड़ों कमा सकते हो, साम्राज्य खड़ा कर सकते हो।"
अब वह शिष्य नारद जी के पास लौट आया। अब उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था। वही व्यक्ति, वही वस्तु, लेकिन दृष्टिकोण बदल गया था। क्यों? क्योंकि अब उस वस्तु, उस रत्न के बारे में उसका ज्ञान बदल चुका था।
निष्कर्ष
ठीक इसी प्रकार हम भी अपने मानव जीवन को कोई विशेष महत्व नहीं देते, क्योंकि हमें इसके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान नहीं है। हम इसे पशु-पक्षियों की तरह केवल खाने, पीने, सोने और प्रजनन में बर्बाद कर देते हैं, क्योंकि हमें इसकी महत्ता का बोध नहीं है।
"केवल जीवन के लिए जीवन जीना, मनुष्य के पास होने के बावजूद भी उसे पशु के समान बना देता है। ऐसा जीवन मनुष्य को थकावट से स्थायी रूप से नहीं बचा सकता। यदि जीवन को सार्थक बनाना है, तो उसे किसी ऐसे उद्देश्य की सेवा में लगाना होगा जो मानव जाति से ऊपर हो — जैसे सत्य, सौंदर्य और ईश्वर।" – बर्ट्रेंड रसेल, प्रिंसिपल्स ऑफ सोशल रिकंस्ट्रक्शन
ज्ञान की क्षमता और कर्म के अधिकार से युक्त मनुष्य न केवल सबसे भयावह जीवों को वश में कर सकता है, बल्कि सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी ईश्वर को भी अपने प्रेम से बाँध सकता है। लेकिन इस शक्तिशाली मानव शरीर में एक बड़ी कमजोरी भी छिपी है — इसकी क्षणभंगुरता।
बुद्धिमान व्यक्ति इसी क्षणिकता पर मनन करते हैं और इस मानव जीवन को आत्मा के सर्वोच्च उद्देश्य की पूर्ति में लगाते हैं — ऐसा उद्देश्य जिसकी पूर्ति के बाद और कुछ भी शेष नहीं रहता।
राधे राधे



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