हमें भारतीय होने पर गर्व क्यों होना चाहिए?
- Swami Yugal Sharan Ji

- 10 अप्रैल
- 2 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 16 अप्रैल

हमारे अस्तित्व की प्रकृति हमारे विचारों के स्तर पर निर्भर करती है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। सामर्थ्य स्वयं आ जाएगा। हमें केवल अपने आदर्श को ऊँचा रखना है। सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए बुद्धि की नहीं बल्कि एक शुद्ध हृदय की आवश्यकता होती है। हमारे विचारों का कैनवास जितना बड़ा होगा, हम उतने ही अधिक सक्षम बनते हैं।
असल बात हमारी प्यास है। हमारी सेवा की प्यास ही पात्रता की आधारशिला स्थापित करती है। यदि हम केवल इस सिद्धांत पर मनन करें, तो हमारे पास अपार सामर्थ्य है। महाप्रभु जी ने कहा है–
"भारत भूमिते हइल मनुष्य जन्म यार।जन्म सार्थक करि कर पर उपकार।।"
यह उन्होंने विशेष रूप से भारतवासियों के लिए कहा, क्योंकि यह अमूल्य खज़ाना पृथ्वी पर कहीं और नहीं, केवल भारत में ही पाया जा सकता है–
"धन्येयं धरणी ततोऽपि मथुरा तत्रापि वृन्दावनम्तत्रापि व्रजवासिनो युवतयस्तत्रापि गोपाङ्गना:।
तत्राचिन्त्यगुणैकधाम परमानन्दात्मिका राधिकालावण्याम्बुनिधिस्त्रिलोकरमणी चूडामणि काचन।।"
यह भारतभूमि धन्य है, भारत में सबसे धन्य स्थान है मथुरा, मथुरा में वृंदावन सबसे प्रसिद्ध है, वृंदावन में व्रजवासी सखियाँ और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं और उन सभी में सबसे प्रमुख हैं श्री राधा रानी जो सभी सखियों की मुकुटमणि हैं।
हम सभी भारतवासियों के पास उस परम सत्य की कम से कम एक झलक अवश्य है। इसलिए केवल भारतीय ही इस सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और उसे बाँट भी सकते हैं। यही मनुष्य जीवन के दो उद्देश्य हैं–
i) अपने उच्चतम लक्ष्य की पूर्ति
ii) दूसरों को इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता करना
श्री राधा रानी के प्रेमरस का अमृत चखने का सर्वोच्च आदर्श केवल भारतवासियों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। उनके प्रयास इस सर्वोच्च लक्ष्य को शेष दुनिया के लिए भी सुलभ बना सकते हैं। अतः हमारे ऊपर एक महान उत्तरदायित्व है। इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए हमें केवल एक विचार को बनाए रखना है – अपने गुरु की पूरी शक्ति से सेवा करना और श्री राधा कृष्ण की अनन्य भक्ति करना।
राधे राधे



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